चिंता मुक्त होकर सिर्फ वही रह सकता है जो इससे निबटने की युक्ति को जानता है। चिंता के माया जाल से मुक्त होने के लिए कोई औषधि नहीं है। खान-पान, वेशभूषा, मान- मर्यादा, बच्चों का भविष्य, स्वास्थ्य, बेटी का ब्याह, रहन-सहन की शैली, रिश्ते नातों के बीच सामंजस्य, दायित्व का निर्वाह आदि अनेक ऐसी बातें होती है जो चिंता को उत्पन्न कर देती हैं
चिंता अगर बीमारी है तो अभ्यास उसकी औषधि। मन में दृढ़ संकल्प करके नियमित रूप से योगाभ्यास करने पर जहां आलस्य, थकावट कम होती है वही उत्साह, लगन शीलता, अभिरुचि एवं सभी प्रकार की मनो भावनाओं को बल मिलता है। छात्रों की चिंता होती है कि वे अपने अध्ययन के प्रति दिमाग को किस प्रकार एकाग्रचित्त कर सके?
1. राजयोग- राजयोग का अभ्यास खासकर मानसिक शक्ति के विकास एवं नियंत्रण से संबंध होता है। धारणा, ध्यान और समाधि इसके प्रमुख अंग हैं। जब मन को किसी एक बिंदु पर केंद्रित किया जाता है तो उसे ‘धारणा‘ कहा जाता है इसे ही एकाग्रचित्त होना भी कहा जाता है। चित्त को एकाग्र करके ‘ध्यान‘ के माध्यम से चिंतन एवं मनन किया जाता है। जब पूर्ण तलीनता के साथ चिंतन एवं मनन में व्यक्ति डूब जाता है तो उसे ‘समाधि‘ कहा जाता है।
2. हठयोग- हठयोग में विशेषकर शारीरिक क्रियाओं का अभ्यास होता है। इन क्रियाओं को आसन, प्राणायाम, बंध और मुद्रा के नामों से जाना जाता है। आसनों के अभ्यास में कभी शरीर के खास अंग और कभी सारे शरीर को मोड़ना, घुमाना, तानना या स्थिर रखना पड़ता है।
प्राणायाम की क्रिया में विशेष प्रकार से सांस लेना और छोड़ना पड़ता है। इसके कई प्रकार है परंतु लगभग 10 प्रकारों का ही विशेष अभ्यास किया जाता है। बंध की क्रियाओं का अभ्यास उन लोगों द्वारा किया जाता है जिन्होंने आसन एवं प्राणायाम का अभ्यास जान लिया हो। बंध की क्रियाओं के 8 प्रकार होते हैं। मुद्राओं में छह प्रकार के मुद्राओं के अभ्यास अधिकतर प्रचलित हैं। वरुण मुद्रा, ज्ञान मुद्रा, प्राण मुद्रा, वायु मुद्रा, सूर्य मुद्रा तथा शुन्य मुद्रा।
3. ज्ञानयोग- योग विज्ञान में ज्ञान योग का बड़ा ही महत्व है। कपिल मुनि के अनुसार, उचित ज्ञान के अभाव के कारण व्यक्ति को चिंता या दुःख होता है। चिंता से छुटकारा पाने के लिए यह आवश्यक है कि उसे वस्तुओं का यथार्थ ज्ञान हो।
4. कर्मयोग- इससे अपने कर्तव्य वैज्ञानिक ढंग से करने की शिक्षा मिलती है। फल प्राप्त करने के लिए शारीरिक मेहनत के साथ साथ बुद्धि भी लगाने की आवश्यकता होती हैं। कर्म योग यही शिक्षा देता है कि महज शारीरिक या मानसिक मेहनत ही काफी नहीं है बल्कि उसके साथ साथ उचित विधि और समझ बूझ का भी होना आवश्यक होता है।
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